प्रयागराज में हर 12 साल में आयोजित होने वाला कुम्भ मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का है, बल्कि इसके कई ऐसे पक्ष भी हैं जो सामान्य रूप से ध्यान में नहीं आते।
कुम्भ मेला क्षेत्र में कुछ प्राचीन गुफाएँ और मंदिर स्थित हैं, जिनका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है, लेकिन अधिकांश लोग इन स्थानों के बारे में नहीं जानते। इनमें से एक है रामकृष्ण गुफा और नदी गुफा, जो अधिकतर पर्यटकों की नज़र से ओझल रहते हैं।
हालांकि लोग गंगा और यमुन के संगम को प्रमुख रूप से जानते हैं, लेकिन अदृश्य सरस्वती नदी का संगम भी कुम्भ के दौरान ध्यान आकर्षित करता है। यह नदी प्राचीन भारतीय मान्यताओं में विशेष स्थान रखती है और इसकी महिमा का अहसास कुम्भ के दौरान होता है।
कुम्भ मेला में कई साधक और संत अपने निजी आश्रमों में ध्यान और साधना करते हैं, जिन्हें कुछ लोग सामान्यतः नहीं देखते। इनमें से कुछ आश्रमों में तंत्र, योग और ध्यान की गहरी विधियाँ सिखाई जाती हैं।
प्रयागराज में वाग्देवी का मंदिर एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहां साधक अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं। यह मंदिर विशेष रूप से तपस्वियों और साधकों के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही काल भैरव का मंदिर भी कुछ हद तक छुपा हुआ है, जो प्रमुख रूप से तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है।
कुम्भ मेला के दौरान गंगा के किनारे कुछ विशेष अस्थि विसर्जन स्थल होते हैं, जहां लोग अपने पूर्वजों की अस्थियाँ विसर्जित करने आते हैं। यह एक विशेष पूजा विधि है जो बहुत कम लोगों को ज्ञात होती है।
कुम्भ मेला क्षेत्र में कई ऐसे गुप्त घाट हैं, जहां परंपरागत रूप से साधक और श्रद्धालु विशेष स्नान करते हैं। इन घाटों तक पहुँचने के लिए लोगों को जरा सी खोजबीन करनी पड़ती है और यह कम ही लोगों को दिखते हैं।
कुम्भ मेले के दौरान प्रयागराज में कुछ विशेष स्थल होते हैं, जहां पंडित और संत अपने धार्मिक वाचन, शास्त्रार्थ और ज्ञानवर्धन के लिए बैठक करते हैं। इन बैठकों में भाग लेना एक विशिष्ट अनुभव हो सकता है, लेकिन ये सामान्यत: पर्यटकों से दूर रहते हैं।
कुम्भ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यहां विभिन्न संस्कृतियों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इसके भीतर छोटे-छोटे ग्राम होते हैं, जिनमें पुरानी संस्कृति, लोक कला और भारतीय आदिवासी सभ्यता की झलक मिलती है।